Hindi NewsLocalRajasthanJaipurTonkThere Is Also A Target To Make 100 Ideal Villages From Environmental Point Of View, 14 Villages Have Been Marked, Work Has Started In 3 Villages, Lamba Has Joined Kalpataru Institute And Has Saved 50 Lakh Saplings From Destruction Till Nowखूंखार डाकुओं को दिला चुके हैं पर्यावरण संरक्षण की शपथ: 50 लाख पौधे लगा चुके विष्णु लांबा अब लगाएंगे 5 करोड़ पौधे और बसाएंगे 100 आदर्श गांवटोंक 8 घंटे पहलेकॉपी लिंकआज पर्यावरण दिवस है। इस मौके पर पर्यावरण की बात चले और जिले के लांबा निवासी ट्री मैन ऑफ इंडिया के नाम से पहचाने जाने वाले विष्णु लांबा का जिक्र न हो, ये हो नहीं सकता? जी हां ये सौ फीसदी सही है। विष्णु लांबा आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं।उन्हें यह पहचान यूं ही नहीं मिली। पर्यावरण संरक्षण के लिए 27 बसंत इस तरह बिता दिए कि उन्हें भी ठीक से याद भी नहीं है। उन्होंने 27 साल से कल्पतरु संस्थान से जुड़कर अब तक 50 लाख पौधे लगाने समेत नष्ट होने से बचा लिए हैं। इस दिशा में काम करने का उनका जुनून देखते ही बनता है।उन्होंने देश भर में 5 करोड़ पौधे लगाने एवं 100 गांवों को ईको फ्रेंडली यानी कि पर्यावरण की दृष्टि से आदर्श गांव बनाने का लक्ष्य रखा है। सरल व सादगी जीवन जीने वाले लांबा को पर्यावरण संरक्षण के लिए किए गए कार्य को लेकर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी तक सम्मानित कर चुके हैं और लांबा को ट्री मैन ऑफ इंडिया का नाम दिया। इसके अलावा ऐसे कई अवार्ड लांबा को देश- विदेश से मिले हैं, जो इनके कार्यों का बखान कर रहे हैं।आज ट्री मैन ऑफ इंडिया के नाम से पहचाने जाने वाले विष्णु लांबा बचपन में पौधा चोर के नाम से जाने जाते थे। उनके गांव को लोगों को यह आभास भी नहीं था कि यह लड़का आगे चलकर असाधारण बनेगा। विष्णु लांबा कहना है कि उसका उद्देश्य मनुष्य और पर्यावरण के बीच संतुलन स्थापित करना है।विष्णु को पशु-पक्षियों से भी प्यार है।इसके लिए कई बार असामाजिक तत्वों ने लांबा पर हमला भी किया। लेकिन अपने उद्देश्य से डिगा नहीं। अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए पेड़ बचाने और लगाने का काम जारी है। नर्मदा नदी, शिप्रा नदी पर भी काम कर रहे हैं। अब कोरोना को देखते हुए सबसे अधिक बरगद, पीपल के पौधे लगाने का हैं। लॉकडाउन के चलते पर्यावरण दिवस पर ज्यादा लोग इकट्ठे नहीं होंगे। देशभर में हमारी कल्पतरु संस्था के कार्यकर्ता अपने अपने स्तर पर पौधे लगाएंगे।रहने का नाम पर जयपुर में छह गुणा छह फीट का किराया का कमरा है:-विष्णु लांबा के पास जयपुर टोंक रोड क्षेत्र में एक छह गुणा छह फीट का कमरा है। यह भी कल्पतरु संस्थान का कार्यालय है। इसी में रहता है। बिछावन के नाम पर कमरे में एक दरी है और ओढ़ने के लिए दो कम्बल हैं। एक पानी पीने का तुम्बा है, मिट्टी और लकड़ी के कुछ बर्तन हैं। कोई पंखा, कूलर, फ्रिज, टीवी आदि सांसारिक वस्तुएं, कुछ नहीं। हा, किताबों का अंबार लगा है, सौ से अधिक अवॉर्ड ओर ट्रॉफियां भी रखी हैं।एक पौधाचोर से ट्री मैन तक का सफरराजस्थान के टोंक ज़िला मुख्यालय से क़रीब 15 किमी की दूरी पर स्थित है लांबा गांव। यही है विष्णु का जन्मस्थान और कर्मस्थान। विष्णु की उम्र 33 वर्ष है और उन्हें अनुभव है 27 वर्ष का। इतनी कम उम्र में इतने अनुभव के बारे में विष्णु बताते हैं कि वे 9 वीं कक्षा में ही पूरी तरह घर छोड़कर निकल आए थे।लाम्बा गांव के लोग 27 साल पहले जिस विष्णु को पौधा चोर तक कहा करते थे, उन्होंने कहां सोचा था कि यही पौधा चोर एक दिन अपने छोटे से गांव का बड़ा नाम करेगा। आज इस छोटे से गांव के युवक विष्णु लांबा की पहचान ‘ट्री मैन ऑफ इंडिया' के नाम से होती है।यह नाम पहली मुलाकात के दौरान पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें पर्यावरण के क्षेत्र में किए गए कार्य को देखते हुए दिया था। गत महाराष्ट्र सरकार के वन मंत्री ने उन्हें ग्रीन आर्मी का एम्बेसेडर नियुक्त किया था। हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय प्रसारक डीडब्ल्यू जर्मन ने पर्यावरण के क्षेत्र में उनकी सफलता पर एक स्टोरी तैयार की है। जो 30 भाषाओं में कई देशों में प्रसारित हो रही है। लांबा ने बीए, बीजेएमसी कर रखी है।घर-बार छोड़ जुटे हैं पर्यावरण संरक्षण मेंविष्णु को बचपन से पौधे लगाने का शौक़ था। इसी जुनून के कारण हाल यह है कि उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए कई सालों से अपना घर-बार तक छोड़ रखा है। पर्यावरण के क्षेत्र में किए गए उनके अनुकरणीय योगदान के कारण विष्णु को अब तक राजीव गांधी पर्यावरण पुरस्कार, डाॅ. मैं सात साल का था तब मां के साथ हैंडपंप पर पानी भरने जा रहा था। वहां पर रेवड़ी पर एक आम का पौधा लगा हुआ था। मैंने मां से उसको लेने के लिए कहा। मां मेरी भावना समझ गईं। वे उसको अपनी लुगड़ी की झोली में बांधकर मेरे लिए घर ले आईं। उस दिन मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। मैंने अपने बाड़े में उसे लगाया। तब से ही हालत ये हो गई कि आम सहित कई पौधे ढूंढने लगा और उसे लाकर अपने बाड़े में लगा देता। हालांकि उस समय के लगाए ज्यादा पौधे बड़े नहीं हो पाए। लेकिन हालत ये हो गई कि पौधे इधर-उधर से चुराकर भी लाने लगा। तब से पौधों के प्रति इतना लगाव हुआ कि वो अब तक बना हुआ है।पर्यावरण के लिए किस तरह जीवन को समर्पित किया? -पढ़ाई-लिखाई की तरफ़ अधिक रुझान नहीं था, पेड़-पौधों और साधु-संन्यासियों के प्रति झुकाव रहा है। हालांकि मेरी दिली इच्छा थी कि मैं राष्ट्रसेवा के लिए सेना में जाऊं। माता सुशीला देवी ने बचपन में रामायण और महाभारत की कथाओं का ज्ञान कराया।पिता श्रवणलाल शर्मा गांव में स्थित चारभुजा मंदिर के महंत हैं। पढ़ाई में कमज़ोर होने के कारण पिता ने गांव के तालाब किनारे स्थित बालाजी मंदिर के संत रामचंद्रदास महाराज के पास भेज दिया। यहां पूरा दिन महाराज के पास रहते, कई बार तो रात को भी यहीं रुक जाता था।कह सकते हैं कि पारिवारिक संस्कारों ने संन्यासियों के क़रीब लाने का काम किया। इसके बाद संन्यास की ओर चल पड़ा। उसी दौरान टो
Source: Dainik Bhaskar June 05, 2021 07:29 UTC