दिल्ली के अशोक होटल के पीछे 39 साल पहले गिरा टू सीटर विमान, राजनीति का उदयमान सितारा हुआ अस्त - News Summed Up

दिल्ली के अशोक होटल के पीछे 39 साल पहले गिरा टू सीटर विमान, राजनीति का उदयमान सितारा हुआ अस्त


दिल्ली के अशोक होटल के पीछे 39 साल पहले गिरा टू सीटर विमान, राजनीति का उदयमान सितारा हुआ अस्तनई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। संजय गांधी का जन्म 14 दिसम्बर 1946 को हुआ था और उनकी मृत्यु 23 जून 1980 को दिल्ली में अशोक होटल के पीछे टू सीटर विमान के दुघर्टनाग्रस्त होने से हो गई थी। संजय गांधी भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे और राजीव गांधी के छोटे भाई थे। संजय की शुरूआती शिक्षा के लिए उनका दाखिला देहरादून के वेल्हम बॉयज में कराया गया था।स्कूली परीक्षा के बाद संजय गांधी ने ऑटोमोटिव इंजिनियरिंग की पढ़ाई की और इंग्लैंड स्थित रॉल्स रॉयस (तत्कालीन ब्रिटिश तग्जरी कार कंपनी) में 3 साल के लिए इंटर्नशिप भी किया था। संजय गांधी की पत्नी का नाम मेनका गांधी है, मेनका गांधी के पुत्र का नाम वरुण गांधी है। मात्र 34 साल की उम्र में ही उनकी मौत हो गई थी।भारत में आपातकाल के समय उनकी भूमिका बहुत विवादास्पद रही। संजय गांधी को बचपन से ही स्पोर्ट्स कार का बहुत शौक था और उन्होंने पढ़ाई पूरी करने के बाद airline pilot का पायलट लाइसेंस भी प्राप्त किया। संजय गांधी अपनी मां के बेहद करीब माने जाते थे। संजय गांधी मात्र 25 साल की उम्र में ही मारुति मोटर्स लिमिटेड का मैनेजिंग डायरेक्टर बनाए गये। साल 1971 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में बांग्लादेश की मुक्ति के लिए हुए युद्ध के चलते और साथ ही अन्य कारणों के चलते मारुति लिमिटेड ने एक भी कार का उत्पादन नहीं किया और केवल एक मॉडल कार को तैयार किया गया था।जनता के बीच इसकी खूब आलोचना की जाने लगी जिसका जिम्मेदार लोग संजय गांधी को मान रहे थे। संजय गांधी ने तब पश्चिमी जर्मनी के Volkswagen AG से मदद के लिए गुहार लगाई जिसके बाद फॉक्सवैगन के साथ नया अनुबंध, तकनीक स्थानांतरण के द्वारा भारत के आम नागरिकों के लिए People's car की निर्माण कार्य प्रारम्भ किया जा सका।देश में आपातकाल25 जून 1975 को भारतीय लोकतंत्र का काला दिन कहा जाता है। इस तारीख को देश में आपातकाल लागू किया गया और जनता के सभी नागरिक अधिकार छीन लिए गए थे। इस फैसले के बाद तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के लिए सब कुछ पहले जैसा नहीं रहा और पहली बार उनके खिलाफ एक देशव्यापी विरोध पनपना शुरु हो गया था।आपातकाल ने देश के राजनीतिक दलों से लेकर पूरी व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया लेकिन उस वक्त लिए गए नसबंदी जैसे सख्त फैसले ने इसे राजनीतिक गलियारों से इतर आमजन के निजी जीवन तक पहुंचा दिया। जनता के अधिकार पहले ही छीने जा चुके थे फिर नसंबदी ने घर-घर में दहशत फैलाने का काम किया। उस दौरान गली-मोहल्लों में आपातकाल के सिर्फ एक ही फैसले की चर्चा सबसे ज्यादा थी और वह थी नसबंदी, यह फैसला आपातकाल का सबसे दमनकारी अभियान साबित हुआ।संजय गांधी की एंट्रीनसबंदी का फैसला इंदिरा सरकार ने जरूर लिया था लेकिन इसे लागू कराने का जिम्मा उनके छोटे बेटे संजय गांधी को दिया गया। स्वभाव से सख्त और फैसले लेने में फायरब्रांड कहे जाने वाले संजय गांधी के लिए यह मौका एक लॉन्च पैड की तरह था, इससे पहले संजय को राजनीतिक रूप से उतना बड़ा कद हासिल नहीं था लेकिन नसबंदी को लागू करने के लिए जैसी सख्ती उन्होंने दिखाई उससे देश के कोने-कोने में उनकी चर्चा होने लगी।आजादी के बाद जनसंख्या विस्फोट से निपटना कांग्रेस सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती थी, अमेरिका जैसे कई अन्य मुल्कों का मानना था कि भारत कितना भी उत्पादन क्यों न कर ले लेकिन विशाल जनसंख्या का पेट भरना उसके बस में नहीं, वैश्विक दबाव और परिवार नियोजन के अन्य फॉर्मूले फेल साबित होने पर आपातकाल ने नसबंदी को लागू करने के लिए अनुकूल माहौल तैयार किया, लेकिन इस फैसले के पीछे संजय गांधी की महत्वाकांक्षा भी थी क्योंकि उन्हें खुद को कम वक्त में साबित करना था।जबरन और लालच देकर नसबंदीवृक्षारोपण से लेकर शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े कई अभियान भी देश में पहले से चलाए जा रहे थे लेकिन ऐसे अभियानों से संजय गांधी को किसी त्वरित परिणाम की उम्मीद नहीं थी, इसी को ध्यान में रखते हुए जब उन्हें नसबंदी लागू कराने का जिम्मा सौंपा गया था तो उन्होंने इसका बहुत सख्ती से पालन कराना शुरू कर दिया। इस दौरान हर तरह से लोगों की नसबंदी की गई।जानकारी के अनुसार एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ एक साल के भीतर देशभर में 60 लाख से ज्यादा लोगों की नसबंदी की गई, इनमें 16 साल के किशोर से लेकर 70 साल तक के बुजुर्ग शामिल थे। यही नहीं एक और जानकारी सामने आई कि इस दौरान ऑपरेशन और इलाज में लापरवाही की वजह से करीब दो हजार लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी। इस अभियान में करीब 4 लाख लोगों की नसबंदी की गई थी।खौफ में थी नौकरशाहीसंजय इस फैसले को पूरे देश में युद्ध स्तर पर लागू कराना चाहते थे, सभी सरकारी महकमों को साफ आदेश था कि नसंबदी के लिए तय लक्ष्य को वह वक्त पर पूरा करें, नहीं तो तनख्वाह रोककर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इस काम की रिपोर्ट सीधे मुख्यमंत्री दफ्तर को भेजने तक के निर्देश दिए गए थे। साथ ही अभियान से जुड़ी हर बड़ी अपडेट पर संजय गांधी खुद नजर लगाए हुए थे।ऐसी सख्ती के बाद हर महकमा सर्तक हो गया और अभियान में तेजी दिखाई पड़ती थी। 21 महीने बाद जब देश से आपातकाल खत्म हुआ तो सरकार के इकलौते इसी फैसले की आलोचना सबसे ज्यादा हुई। बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने तो नसबंदी की आलोचना में एक कविता तक लिखी थी।विमान हादसे में हुई थी संजय गांधी की मौतसंजय गांधी को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था। 23 जून 1980 को संजय गांधी की एक विमान हादसे में मौत हो गई थी। संजय की मौत के करीब चार साल बाद 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी के बॉडीगार्ड ने ही उनकी हत्या कर दी थी। जिसके बाद देश के कई स्थानों पर भयानक हिंसा भी हुई थी। इंदिरा की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी के कंधों पर सत्ता का भार आ गया और वे देश के छठे प्रधानमंत्री बने।बिना पढ


Source: Dainik Jagran June 22, 2019 18:56 UTC



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