झारखंड में लिव इन रिलेशनशिप का सच: कैसे भोजन नहीं करवाने पर हो जाता है बहिष्कारDainik Bhaskar Jun 23, 2019, 01:15 AM ISTनिकिता सिन्हा/अमित सिंह | रांचीमेट्रो शहरों में लिव-इन रिलेशनशिप भले ही नया हो, मगर झारखंड के आदिवासी समाज में ये बरसों पहले से मौजूद है। हालांकि ये यहां प्रथा नहीं, एक सजा है। विडंबना ये है कि बड़े शहरों से शुरू हुई कानूनी लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट ने तो लिव-इन रिलेशनशिप को वैधता दे दी, लेकिन राज्य के खूंटी, गुमला, सिमडेगा जैसे आदिवासी बहुल शहरों में लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़े आज भी सामाजिक बहिष्कार का शिकार हैं।दरअसल, आदिवासी समाज का ये नियम है कि शादी के समय पूरे गांव व रिश्तेदारों को दो वक्त की दावत देनी होती है। मांस-चावल खिलाना होता है, हंड़िया-शराब पिलानी पड़ती है। खर्च करीब एक लाख रु. तक आता है। और जो जोड़े ये नियम पूरा नहीं कर पाते उनके विवाह को समाज मान्यता नहीं दे पाता। चौंकाने वाली ये रस्म नहीं, बल्कि इसके भुक्तभोगियों का आंकड़ा है। आदिवासी समाज के बीच काम करने वाली संस्थाओं के मुताबिक यहां ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे करीब 6-7% विवाहित जोड़े यानी 2 लाख से ज्यादा जोड़े लिव-इन में ही रह रहे हैं। ऐसे जोड़ों का विवाह करने वाली संस्था निमित्त फाउंडेशन की सचिव निकिता सिन्हा को हमने इस रिपोर्ट के लिए बतौर एक्सपर्ट अपनी टीम में शामिल किया। उनके साथ हमारी टीम 3 जिलों के 10 गांवों में गई। शेष | पेज 08 परमजबूरी: मां-बाप और बेटे ने साथ की शादीगुमला के मनातू गांव में एक ऐसा परिवार है, जिसकी दो पीढ़ियां लिव इन में रही। मजबूरी में अब बाप-बेटे को एक साथ शादी करनी पड़ी। रामलाल मुंडा कोलकाता में काम करते हैं। 27 साल पहले उन्होंने सहोदरी देवी (बाएं) के साथ रहना शुरू किया था। गांव वालों को भोजन नहीं करा सके तो पैसा कमाने कोलकाता चले गए। अब उनका बेटा नितेश्वर (दाएं) अरुणा मुंडा (बीच में) के साथ बिना शादी रहने लगा। वो तीन साल से लिव इन में था। रांची में 14 जनवरी 2019 को सामूहिक विवाह कार्यक्रम में पिता रामलाल ने सहोदरी देवी और बेटे नितेश्वर ने अरुणा से शादी की।
Source: Dainik Bhaskar June 22, 2019 19:41 UTC