Ganesh Chaturthi 2020 dos and donts 2020 Dos and Donts : गणेश चतुर्थी पर इन दो गलतियों से बुरा वक्त शुरु हो जाता है - News Summed Up

Ganesh Chaturthi 2020 dos and donts 2020 Dos and Donts : गणेश चतुर्थी पर इन दो गलतियों से बुरा वक्त शुरु हो जाता है


गणपति यानी हमारे समस्त गणों अर्थात इंद्रियों के स्वामी। गणेश हमारी आंतरिक व बौद्धिक क्षमता के स्वामी हैं। गणेश चतुर्थी बौद्धिक, मानसिक और शैक्षिक प्रगति के लिए श्रेष्ठ पर्व है। गणपति उत्सव दरअसल आपने भाग्य को बदलने का काल है। इस पर्व पर त्राटक और ध्यान के द्वारा उपासना का विशेष महत्व है।इस दिन को लेकर कई अद्भुत, अनोखी और विचित्र मान्यताएं भी सामाजिक ताने बाने की तरह प्रचलन में हैं। महाराष्ट्र में विशेष तौर पर इस दिन लोग अपने घरों में गणपति की प्रतिमा स्थापित कर अपने मित्रों और परिजनों को दर्शन के लिए आमंत्रित करते हैं। विचित्र बात ये है कि जिसे भी आमंत्रण मिलता है, उसे दर्शन के लिए यथासंभव जाना ही पड़ता है, अन्यथा इसे भावी अनिष्ट या गणपति की कृपा से वंचित होने से जोड़कर देखा जाता है। यानी गणपति के दर्शन का बुलावा आए तो दर्शन के लिए आना जरूरी होता है।ऐसी ही एक और अजीब प्रथा इस दिन को लेकर प्रचलित है। कही सुनीं मान्यताएं गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) के दिन चंद्रदर्शन को शुभ फल प्रदायक नहीं मानती। कहीं-कहीं गणेश चतुर्थी पर चांद को देखना अशुभ कहा जाता है, इस दिन चांद को देखने से झूठा कलंक लगता है और मान-सम्मान की हानि होती है। हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।सदगुरुश्री कहते हैं कि, पूर्व के नकारात्मक कर्म जनित दुःख, दारिद्रय, अभाव व कष्टों से मुक्ति या इनसे संघर्ष हेतु शक्ति प्राप्त करने के लिए, मंत्र महोदधि, महामंत्र महार्णव सहित तंत्र शास्त्र के कई प्राचीन ग्रंथों के गणेश तंत्र में भाद्रपाद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से चतुर्दशी तक यानि दस दिनों तक गणपति का विग्रह स्थापित करके उस पर ध्यान केंद्रित कर उपासना का विशेष उल्लेख प्राप्त होता है।गणेश तंत्र में प्रतिमा के आकार को लेकर विशिष्ट नियम का स्पष्ट निर्देश प्राप्त होता। मंत्र महोदधि के अनुसार कुम्हार के चाक की मिट्टी से गणपति की एक ऐसी प्रतिमा का निर्माण यथासंभव स्वयं करें, या कराएं, जिसका आकार अंगुष्ठ यानि अंगूठे से लेकर हथेली अर्थात् मध्यमा अंगुली से मणिबंध तक के माप का हो। विशेष परिस्थितियों में भी इसका आकार एक हाथ जितना, यानि मध्यमा अंगुली से लेकर कोहनी तक, हो सकता है। इसके रंगों के कई विवरण मिलते हैं, पर कामना पूर्ति के लिए रक्त वर्ण यानि लाल रंग की प्रतिमा का उल्लेख ग्रंथों में मिलता है। गणपति साधना में मिट्टी, धातु, लवण, दही जैसे कई तत्वों की प्रतिमा का उल्लेख मिलता है, पर प्राचीन ग्रंथ चतुर्थी से चतुर्दशी तक की इस उपासना में सिर्फ कुम्हार के चाक की मिट्टी के नियम की ही संस्तुति करते हैं।सद्गुरु स्वामी आनंदजीगणेश चतुर्थी की और स्टोरी और खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें..


Source: Navbharat Times August 22, 2020 04:10 UTC



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