आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार मनुष्य अपने कर्मों को भोगता है। ये कर्म सिर्फ काया से नही बल्कि वचन और विचारों से भी होते हैं। जब हमसे हमारा बोध खो गया, हम कर्मों के फल को विस्मृत करके भौतिकता में अंधे होकर उलटे कर्मों के ऋण जाल में फंस कर छटपटाने लगे, हमारे पूर्व कर्मों के फलों ने जब हमारे जीवन को अभाव ग्रस्त कर दिया, तब हमारे ऋषि मुनियों ने हमें उसका समाधान दिया और हमें गणपति के कर्मकांडीय पूजन से परिचित कराया। पूर्व के नकारात्मक कर्म जनित दुःख, दारिद्रय, अभाव व कष्टों से मुक्ति या इनसे संघर्ष हेतु शक्ति प्राप्त करने के लिए, शारदातिलकम, मंत्र महोदधि, महामंत्र महार्णव सहित तंत्र शास्त्र के कई प्राचीन ग्रंथों के गणेश तंत्र में भाद्रपाद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से चतुर्दशी तक यानि दस दिनों तक गणपति का विग्रह स्थापित करके उस पर ध्यान केंद्रित कर उपासना का विशेष उल्लेख प्राप्त होता है। इस उपासना में गणपति का पंचोपचार पूजन करके उनके समक्ष नैवेद्य अर्पित किया जाता है। ये नैवेद्य कैसा हो इसका विवरण हमारे प्राचीन पूजन पद्धति में स्पष्ट रूप से बताया गया है।मोदकै: पृथुकेर्लाजै:सक्तुभिश्चेक्षुपर्वभि:।नारिकेलैस्तिलै: शुद्धै: सुपक्वै: कदलीफलै:।अष्ट द्रव्याणी विघ्नस्य कतिथानि मनिषिभि:।गणेश पूजन नैवेद्य भोगशारदातिलकम के त्रयोदश पटल यानि गणपति प्रकरण के उपरोक्त उल्लेख के अनुसार अष्ट द्रव्य यानि मोदक, चिउड़ा, लावा, सत्तू, गन्ने का टुकड़ा, नारियल, शुद्ध तिल और पके हुए केले को विघ्नेश्वर का नैवेद्य माना गया है। गणेश तंत्र के अनुसार भाद्रपद की चतुर्थी को अपने अंगुष्ठ आकार के गणपति की प्रतिमा का निर्माण करके उन्हे अर्पित विधि विधान स्थापित करके, उनका पंचोपचार पूजन करके उनके समक्ष ध्यानस्थ होकर ‘मंत्र जाप’ करना आत्मशक्ति के बोध की अनेकानेक तकनीक में से एक है।प्राचीन ग्रंथों के अनुसार भाद्रपद की चतुर्थी को रक्त चंदन या सितभानु (सफेद आक) के गणपति की अंगुष्ठ आकार की प्रतिमा की स्थापना करके चतुर्दशी तक नित्य अष्ट मातृकाओं ( ब्राम्ही, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इंद्राणी, चामुंडा एवं रमा) तथा दस दिशाओं में वक्रतुंड, एकदंत, लंबोदर, विकट, धूम्रवर्ण, विघ्न, गजानन, विनायक, गणपति एवं हस्तिदन्त का पूजन करके मंत्र जप और नित्य तिल और घृत की आहुति उत्तम जीवन प्रदान करती है। मिट्टी से निर्मित प्रतिमा से संपत्ति, गुड़ निर्मित प्रतिमा से सौभाग्य और लवण की प्रतिमा की उपासना से शत्रुता का नाश होता है।-सद्गुरु स्वामी आनंदजी
Source: Navbharat Times August 22, 2020 05:37 UTC