मेरठ (ब्यूरो)। युवाओं के बीच बढ़ता प्लेजर वाइब्रेटर रिंग्स का साइलेंट ट्रेंड तेजी से फैल रहा है। मेडिकल स्टोर्स और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर बिक रहे रिंग्स अब केवल लाइफस्टाइल प्रोडक्ट नहीं रहे। ये युवाओं की सेक्सुअल हेल्थ में एक न्यूरोलॉजिकल खतरे के रूप में सामने आ रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इन उपकरणों का लगातार और बिना चिकित्सकीय सलाह के इस्तेमाल नर्व सेंसिटिविटी, ब्लड सर्कुलेशन और मानसिक निर्भरता पर गंभीर असर डाल रहा है।ऐसे हुआ खुलासाडॉक्टर्स बताते हैं कि कम या जीरो इरेक्शन वाले मरीजों में ये समस्या तेजी से सामने आ रही है। ऐसे मरीजों की क्लीनिकल रिपोर्ट्स में सामने आया है कि इस तरह से आर्टिफिशल वाइब्रेशन रिंग्स आदि का लगातार इस्तेमाल करने से इनमें साइकोलॉजिकल इरेक्टाइल डिपेंडेंसी डेवलप हुई। नतीजतन, मरीज के दिमाग ने ये मान लिया कि डिवाइस के बिना वह परफॉर्म ही नहीं कर पाएगा। ऐसे कुछ मामलों में लॉन्ग टर्म इरेक्टाइल डिस्फंक्शन जैसी स्थितियां तक देखने में आई हैं।आर्टिफिशल वाइब्रेशन से नर्व सिस्टम डैमेजसेक्सोलॉजिस्ट और न्यूरो-फिजिशियंस बताते हैं कि लगातार तेज वाइब्रेशन से पेनाइल नर्व्स ओवर-स्टिमुलेट हो जाती हैं। इससे नेचुरल टच से सेक्शुअल अराउजल कम होने लगती है। मतलब दिमाग नेचुरल नहीं बल्कि आर्टिफिशल अराउजल का आदी हो जाता है और सुन्नपन, लंबे समय तक नर्व डैमेज, बिना डिवाइस के अराउजल में कमी, जिसे सेंसरी डिपेंडेंसी लूप कहा जाता है, वह बढ़ जाता है।ब्लड सर्कुलेशन का खतराएक्सपर्ट्स बताते हैं कि ऐसे मामलों में एक और बड़ा साइड इफेक्ट देखा जा रहा है। अधिक प्लेजर के लिए कई युवा पुरुष टाइट फिटिंग या ज्यादा देर तक ये रिंग्स पहन लेते हैं। नसों पर इन रिंग्स का दबाव बहुत तेजी से पड़ता है और वह दब जाती हैं। इस कारण ठंडापन, सूजन,माइक्रो-वैस्कुलर डैमेज, यहां तक कि परमानेंट सुन्नपन तक के मामले देखने में आ रहे हैं।बढ़ रहा नेचुरल प्लेजर फेलियरएक्सपर्ट्स बताते हैं कि इंटिमेसी के लिए ऐसे प्रोडक्ट के इस्तेमाल से तेज डोपामिन स्पाइक्स की आदत हो जाती है। ये नेचुरल अराउजल सिस्टम को कमजोर बना रही है। नतीजतन, धीरे-धीरे युवा शरीर नैचुरल प्लेजर पर रिस्पॉन्ड करना कम कर देता है। एक्सपर्ट्स साफ कहते हैं कि अगर किसी को हर बार ऐसे डिवाइस की जरूरत पड़ रही है, तो यह संकेत है कि उसका नर्व सिस्टम थक चुका है। वह इलाज नहीं, सिर्फ लक्षण दबा रहा है।इस वर्ग में मिल रही दिक्कतेंडॉक्टर्स बताते हैं कि प्लेजर रिंग्स के जुड़ी समस्या लेकर आने वालों में 25–45 वर्ष के पुरुष, हाई-स्ट्रेस जॉब, अनियमित नींद, स्क्रीन-टाइम ज्यादा, परफ़ॉर्मेंस एंग्जायटी, जल्दी ढीलापन, या लॉन्ग-लास्टिंग की चाह, पार्टनर को ज्यादा स्टिमुलेशन देने की अपेक्षा करने वाले लोग सर्वाधिक शामिल हैं। साथ ही ऐसे लोग जिनमें नर्व,ब्लड-फ्लो से जुड़ी हल्की दिक्कतें होती हैं। स्मोकिंग, मोटापा, हल्की शुगर, हाई बीपी इरेक्शन पूरी तरह न टिकने की शिकायत, लगातार पोर्न, रील्स देखने से सेंसरी डिस्फंक्शन, नॉर्मल स्टिमुलेशन से संतुष्टि कम हो जाना तेज और तीव्र सेक्शुअल अराउजल की आदत, लॉन्ग-डिस्टेंस या कम-फ्रीक्वेंसी कपल्स जो मिलते समय अनुभव को ज्यादा इंटेंस बनाना चाहते हैं, शामिल हैं।ये मिले साइड इफेक्ट्सलगातार वाइब्रेशन से नर्व सेंसिटिविटी का और कम हो जानाब्लड सर्कुलेशन डैमेजनसें दबना, सुन्नपन, ठंडापन, माइक्रो-नर्व डैमेजकंट्रोल और कम हो जानानेचुरल अराउजल स्लो और कम होनासूजन, जलन, एलर्जी, लालिमा, खुजलीइनका है कहनाप्लेजर रिंग्स कोई मामूली टॉय नहीं, बल्कि युवाओं की न्यूरो-सेक्सुअल हेल्थ पर उभरता साइलेंट रिस्क बनते जा रहे हैं। इनका अनियंत्रित चलन आने वाले वर्षों में ऐसी पीढ़ी बना देगा, जो नेचुरल प्लेजर और नर्व फंक्शन दोनों में कमजोर होगी।डॉ। रईस बरनी, सेक्सोलॉजिस्टअगर हर बार ऐसे किसी उत्पाद की जरूरत पड़ रही है तो यह समाधान नहीं बल्कि बीमारी का संकेत है। खासतौर से युवाओं में ऐसे प्रोडक्ट्स से इरेक्शन संबंधित समस्याएं तेजी से बढ़ने की संभावनाएं होती हैं। ये चिंता का विषय है।डॉ। संदीप जैन, पूर्व आईएमए सचिवयंग एज में ऐसे प्रोडक्ट्स का यूज भविष्य में कई समस्याओं को जन्म दे सकता है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर ये आसानी से उपलब्ध हैं, जिसक लोग बिना कोई इफेक्ट जाने इस्तेमाल करते हैं। बाद में प्रेग्नेंसी के साथ पर्सनल लाइफ में भी इनसे दिक्कतें हो सकती हैं।डॉ। मनीषा त्यागी, सीनियर गायनी
Source: Dainik Jagran December 29, 2025 05:48 UTC