भास्कर न्यूज, पुणे। महाराष्ट्र राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, मुंबई की पुणे सर्किट बेंच ने एक अहम फैसले में पुणे के प्रतिष्ठित रूबी हॉल क्लिनिक और उसके डॉक्टर डॉ. शाह को चिकित्सा लापरवाही का दोषी ठहराते हुए पीड़ित ऑटो रिक्शा चालक को मुआवजा देने का आदेश दिया है। आयोग ने यह फैसला प्रकाश बाबूलाल उर्फ सोहनलाल परदेशी द्वारा दायर प्रथम अपील पर सुनाया, जिसमें उन्होंने जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उनकी शिकायत खारिज किए जाने को चुनौती दी थी। राज्य आयोग ने आदेश पारित करते हुए जिला आयोग के फैसले को रद्द कर दिया और स्पष्ट रूप से माना कि मामले में चिकित्सा सेवा में गंभीर चूक हुई है।आदेश के अनुसार, 17 मई 2006 को प्रकाश परदेशी अपने ऑटो रिक्शा से कोरेगांव पार्क से सर्किट हाउस की ओर यात्रियों को ले जा रहे थे, तभी एक कार ने उनके रिक्शा को जोरदार टक्कर मार दी। इस दुर्घटना में उन्हें कूल्हे और घुटनों में गंभीर चोटें आई, जिसके बाद उन्हें तुरंत रूबी हॉल क्लिनिक में भर्ती कराया गया। वहां डॉ. शाह ने उनकी जांच की और एक्स-रे कराया। एक्स-रे रिपोर्ट देखने के बाद बताया था कि किसी प्रकार का फ्रैक्चर नहीं है और इसी आधार पर अगले ही दिन 18 मई 2006 को उन्हें कुछ दवाइयां देकर अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। हालांकि घर पहुंचने के बाद प्रकाश परदेशी के कूल्हे में दर्द लगातार बढ़ता गया और स्थिति असहनीय हो गई, जिसके चलते उन्होंने अन्य डॉक्टरों से परामर्श लिया। वहां कराए गए एक्स-रे में यह सामने आया कि उनके कूल्हे की हड्डी में फ्रैक्चर है। इसके बाद 19 मई 2006 को प्रकाश परदेशी दोबारा रूबी हॉल क्लिनिक पहुंचे, जहां अस्पताल के अन्य डॉक्टरों ने भी एक्स-रे देखने के बाद फ्रैक्चर की पुष्टि की और तत्काल सर्जरी की सलाह दी। इसके बावजूद वे रूबी हॉल क्लिनिक की सेवाओं से असंतुष्ट होकर समर्थ अस्पताल में भर्ती हुए, जहां 16 जून 2006 को उनके कूल्हे का ऑपरेशन किया गया और हड्डी में कृत्रिम बॉल लगाई गई। ऑपरेशन के बाद उनकी हालत बिगड़ती चली गई और उन्हें सह्याद्री अस्पताल के आईसीयू में भर्ती करना पड़ा। कई दिनों के इलाज के बाद 30 जून 2006 को उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली। प्रकाश परदेशी का कहना था कि यदि शुरुआत में ही फ्रैक्चर की सही पहचान हो जाती तो उन्हें इस लंबी पीड़ा, अतिरिक्त सर्जरी और गंभीर शारीरिक कष्ट से नहीं गुजरना पड़ता।समय पर फ्रैक्चर की पहचान न करना लापरवाहीराज्य उपभोक्ता आयोग ने अपने आदेश में साफ तौर पर कहा कि मरीज को गंभीर दर्द होने के बावजूद केवल मशीन से आई एक्स-रे रिपोर्ट पर निर्भर रहना और क्लिनिकल लक्षणों से उसका समन्वय न करना स्थापित चिकित्सा पद्धति के खिलाफ है। आयोग ने माना कि मरीज को अत्यधिक दर्द की स्थिति में जल्दबाजी में डिस्चार्ज करना और समय रहते फ्रैक्चर की पहचान न करना चिकित्सा लापरवाही की श्रेणी में आता है। आयोग ने यह भी कहा कि डॉक्टरों का यह दायित्व होता है कि वे जांच रिपोर्ट के साथ-साथ मरीज की शारीरिक स्थिति और लक्षणों को भी ध्यान में रखें, जो इस मामले में नहीं किया गया।छह प्रतिशत ब्याज सहित भुगतान करना होगामुआवजे के सवाल पर आयोग ने यह माना कि पीड़ित द्वारा मांगी गई पूरी राशि ज्यादा थी, लेकिन चिकित्सा लापरवाही के कारण हुए खर्च और मानसिक व शारीरिक कष्ट के लिए मुआवजा देना आवश्यक है। इसी आधार पर आयोग ने रूबी हॉल क्लिनिक और डॉ. शाह को संयुक्त रूप से प्रकाश परदेशी को इलाज और सर्जरी खर्च के लिए 85 हजार रुपए छह प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित, मानसिक और शारीरिक पीड़ा के लिए 25 हजार रुपए तथा मुकदमे के खर्च के रूप में 10 हजार रुपए अदा करने का आदेश दिया। प्रकाश परदेशी की ओर से एडवोकेट आशुतोष श्रीवास्तव ने पैरवी की।
Source: Dainik Bhaskar December 23, 2025 14:50 UTC