राजदीप सरदेसाई का कॉलम: मोदी के ‘सहकारी संघवाद’ के लिए केंद्र बनाम राज्य खतरनाक, केंद्र और राज्य सरकारों के मतभेद बढ़ते जा रहे हैं - News Summed Up

राजदीप सरदेसाई का कॉलम: मोदी के ‘सहकारी संघवाद’ के लिए केंद्र बनाम राज्य खतरनाक, केंद्र और राज्य सरकारों के मतभेद बढ़ते जा रहे हैं


Hindi NewsOpinionCenter Vs State Dangerous For Modi's 'Cooperative Federalism', Differences Between Central And State Governments Are Growingराजदीप सरदेसाई का कॉलम: मोदी के ‘सहकारी संघवाद’ के लिए केंद्र बनाम राज्य खतरनाक, केंद्र और राज्य सरकारों के मतभेद बढ़ते जा रहे हैं12 घंटे पहलेकॉपी लिंकराजदीप सरदेसाई, वरिष्ठ पत्रकारखूबसूरत लक्षद्वीप सुर्खियों में है क्योंकि केंद्र के प्रशासक द्वारा एकतरफा घोषित नए नियमों ने स्थानीय आबादी के बीच ‘भगवा एजेंडा’ थोपने की आशंकाओं को जन्म दिया है। प्रशासक, प्रफुल्ल खोड़ा पटेल गुजरात के पूर्व गृहमंत्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी हैं। उन्होंने यहां नया राजनीतिक मोड़ दिया है। लगभग 100% मुस्लिम आबादी वाले लक्षद्वीप में सांस्कृतिक ‘उपनिवेशीकरण’ के प्रयास की चिंताओं को आवाज दी जा रही है। फिर, चाहे वह नए भूमि नियम हों या द्वीपों पर शराब पीने की अनुमति, यहां एक ‘राष्ट्रवादी’ हिंदुत्व बनाम क्षेत्रीय मुस्लिम बहुसंख्यक संघर्ष है, जो नगण्य अपराध दर और 65,000 की आबादी वाली भूमि के लिए खतरा है। कोई भी देश के शांत छोटे से किनारे को अलग-थलग व अस्थिर क्यों करना चाहेगा, जब तक एक जुनूनी केंद्रीकृत मानसिकता न हो, जो हर हिस्से पर अपने राजनीतिक व वैचारिक अधिकार लागू करना चाहती हो? इस विवाद के मूल में प्रभावशाली केंद्र और हठी राज्य सरकारें हैं। हर हफ्ते कहीं न कहीं केंद्र-राज्य संघर्ष सामने आ जाता है। फिर यह राज्य के वित्त मंत्रियों का जीएसटी बंटवारे पर विरोध हो, कृषि कानूनों पर मतभेद, ऑक्सीजन सप्लाई पर विवाद या टीकाकरण नीति लागू करने का मामला, मोदी सरकार और राज्य के मुख्यमंत्रियो के बीच तनाव रहता है, जो उस ‘सहकारी संघवाद’ के लक्ष्य के लिए खतरनाक है, जिसे अपनाने का मोदी ने दावा किया था। केंद्रीय एंजेंसियों पर इतना अविश्वास है कि आधा दर्जन राज्यों ने सीबीआई के आपरेशनों पर ‘आम सहमति’ से इनकार कर दिया है। संवैधानिक संकट बनते इस तनाव का स्पष्ट उदाहरण है पश्चिम बंगाल। जब से मममा बनर्जी जीती हैं, प्रबल राज्य नेतृत्व और घायल केंद्र के बीच युद्ध रेखा खिंच गई है। इसका ताजा उदाहरण है बंगाल के मुख्य सचिव का राष्ट्रीय राजधानी ट्रांसफर करने के केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश पर केंद्र और ममता सरकार के बीच संघर्ष। इस आदेश को नाराज मुख्यमंत्री ने मानने से इनकार कर दिया। यह राजनीतिक दोषारोपण का समय नहीं है। जब दिल्ली और कोलकाता को कोविड व तूफान का सामना करने के लिए साथ काम करना चाहिए, उनके अहम के टकराव ने केंद्र और राज्य के बीच संवैधानिक व्यवस्था को लगभग तोड़ दिया। बंगाल के शीर्ष नौकरशाह का रातोंरात ट्रांसफर प्रथम दृष्टया मोदी सरकार द्वारा इस आरोप पर प्रतिशोधात्मक लगता है कि मुख्यमंत्री और उनके शीर्ष अधिकारियों ने चक्रवात क्षति की समीक्षा के लिए आए प्रधानमंत्री को 30 मिनट इंतजार करवाया। भले ही मुख्यमंत्री समीक्षा बैठक में भाग लेने में अधिक अनुग्रह दिखा सकती थीं, वास्तविक पहल की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री कार्यालय की थी। ममता बनर्जी तीन बार निर्वाचित मुख्यमंत्री होने के कारण सम्मान की पात्र हैं। इसके अलावा राजनीतिक आकाओं के खेल में आखिर उनके लाचार सरकारी अधिकारियों को शिकार क्यों बनाया जाए। विडंबना है कि गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी की स्थायी शिकायत यह थी कि केंद्र लगातार उन्हें निशाना बनाता है। वास्तव में, 2013 में उन्होंने सांप्रदायिक हिंसा विधेयक पर चर्चा के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा बुलाई गई राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक छोड़ दी थी। मोदी तब तक भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे और उनके समर्थकों का आरोप था बैठक केवल उनके राजनीतिक उदय को रोकने के लिए बुलाई गई थी। अब, बेशक मोदी ने योजना आयोग को भी अनावश्यक बना दिया है, जो केंद्र-राज्य की झड़पों का नियम आधारित हल करने वाले कुछ संस्थानों में से एक है। इसके बजाय, प्रधानमंत्री अब कोविड प्रबंधन पर देशभर के जिलाधिकारियों से सीधे संवाद करते हैं, जबकि मुख्यमंत्रियों के साथ बैठकें, यदि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की मानें तो, केवल प्रधानमंत्री की ‘मन की बात’ के लिए हैं। क्या यह वास्तव में वह संघीय ढांचा है जिसके लिए प्रधानमंत्री तरसते थे या यह बस एक निरंकुश राष्ट्रपति शैली का ‘बिग बॉस’ राष्ट्रीय नेतृत्व है, जो असंतोष या किसी वैकल्पिक सत्ता संरचना को बर्दाश्त नहीं कर सकता? (ये लेखक के अपने विचार हैं)


Source: Dainik Bhaskar June 03, 2021 23:37 UTC



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