सामने थे ईश्वर फिर भी नहीं पहचान पाया, जानिए आप कैसे जानें - News Summed Up

सामने थे ईश्वर फिर भी नहीं पहचान पाया, जानिए आप कैसे जानें


मयंक मुरारीविश्व के एक महान आध्यात्मिक गुरु परमहंस योगानंद जी अपनी पुस्तक ‘मानव की निरंतर खोज’ में लिखते हैं कि मानव जाति ‘कुछ और’ की निरंतर खोज में व्यस्त है। उसे आशा है कि संपूर्ण एवं असीम सुख मिल जाएगा। जिन विशिष्ट आत्माओं ने खोज कर ली और जिनकी खोज अब समाप्त हो चुकी है, उनके लिए ईश्वर ही ‘कुछ और’ है। हमारे जीवन में इस ‘कुछ और’ यानी संपूर्णता की खोज सदैव चलती रहती है। यदा-कदा ही पूर्ण होती है। हमें यह समझ लेना चाहिए कि जब कोई फूल अपने परम सौंदर्य में खिलता है, कोई पत्थर देव रूप में सामने आता है या कोई स्वर हृदय को छू जाता है, तो वह ईश्वर की ही झलक दे रहा होता है। यह सर्वोच्च शिखर ही ईश्वर है। इस परम उत्कर्ष का नाम ही ईश्वर है।12 साल बाद सरयू ने किया श्रीलोधेश्वर का अभिषेक, जानिए कैसे हुआ येवैदिक ऋषियों ने यह हजारों साल पूर्व ही खोज लिया था कि भौतिक सुख से आंतरिक या परम सुख का भोग संभव नहीं है। कितनी भी बाहरी समृद्धि हो स्थायी खुशी नहीं मिलती है। सुख अपने मन की रचना है। हमारी सबसे अनमोल वस्तु की सुंदरता जिसे हम अपनी आंखों से देख रहे हैं, उस वस्तु से विचार हटते ही लुप्त हो जाती है। हम सब प्यासे हैं आनंद के लिए, शांति के लिए और सुख के लिए। सचाई यह है कि जीवन भर सोना, अन्न, कपड़ा, धन और पद को पाने के लिए दौड़ते रहते हैं। इस दौड़ में भी भाव यह रहता है कि सुख का भोग हो रहा है। यह मनोवृत्ति बनी रहती है कि जीवन की संतृप्ति मिल रही है, लेकिन जीवन सिकंदर की तरह थोड़ा-थोड़ा खत्म होता जाता है। निरंतर इच्छा और उसकी पूर्ति की दौड़ में हम अपने लक्ष्य से दो कदम पीछे रह जाते हैं। भूख अनंत की है, प्यास असीम की है। लेकिन सबसे अद‌्भुत बात यह है कि समस्त वासनाओं के पीछे अंतत: ईश्वर को पाने की उत्कंठा बनी रहती है।परम वैभव या परम ऐश्वर्य के सभी रूप परमात्मा के हैं। जहां कहीं भी श्रेष्ठता दिखाई पड़े वहां सत्य है, शिव है और सौंदर्य का प्रकटीकरण है। एक दिलचस्प कहानी है। एक छोटा बच्चा ईश्वर से मिलना चाहता था। उसने प्रार्थना की, ईश्वर आप मुझसे बात कीजिए। तभी एक चिड़िया चहचहाई लेकिन बच्चे ने नहीं सुनी। उसने फिर ईश्वर से कहा कि मुझसे बात कीजिए। तब आकाश से तेज गर्जना हुई। बच्चे ने फिर ध्यान नहीं दिया। उसने फिर ईश्वर से कहा कि मैं आपको देखना चाहता हूं। तभी आकाश में एक सुंदर सितारा चमका। बच्चे का ध्यान किसी दूसरी ओर था। वह रोने लगा और कहा कि प्रभु आप हमें स्पर्श कीजिए। तब बच्चे के हाथ पर एक सुंदर तितली आ बैठी। बच्चे ने उसे हटा दिया। वह थक चुका था। अब वह अपने घर की ओर चला गया। इस कहानी से सीख मिलती है कि ईश्वर हमारे समक्ष विभिन्न रूपों में आते हैं, हम उन्हें पहचान नहीं पाते।एकलव्य की इस बात को जान लेंगे तो कभी नहीं होगा कोविड-19 का संक्रमण, बचने का उपायधरती पर सुबह से शाम तक ईश्वर क्रियाशील है। मनुष्य, वृक्ष, जानवर, तारे, नदियां, पहाड़ सब उसके ही चिह्न हैं। हम चीजों के अस्तित्व को एक रुटीन की तरह लेते हैं और उनके निकट से बिना किसी स्पर्श और संबंध के यूं ही गुजर जाते हैं। फिर उसमें कुछ खोजना व्यर्थ है। जब तक हम चीजों को देख आकुल होकर रुकते नहीं, गहराई में उससे जुड़ते नहीं, तब तक प्रकृति को कैसे समझ सकते हैं!


Source: Navbharat Times August 21, 2020 05:03 UTC



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