वासंतिक यानी कि चैत्र नवरात्र के आखिरी दिन मनाई जाने वाली रामनवमी की अपनी अलग ही महत्ता है। इस दिन जहां नवरात्र पर्व का समापन होता है, मां को विदा किया जाता है वहीं दूसरी ओर पृथ्वी पर प्रभु के जन्म की खुशी मनाई जाती है। इसी दिन भक्तों का कल्याण करने के उद्देश्य से श्री हरि विष्णु ने राम के रूप में जन्म लिया था। ग्रंथों के अनुसार जिस वक्त श्री विष्णु के इस रूप ने धरती पर पदार्पण किया, उस समय सारे ग्रह नक्षत्र और सूर्य की शुभ दृष्टि पृथ्वी पर पड़ रही थी।पुराणों के मुताबिक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने त्रेता युग में चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी को अयोध्या नरेश श्री दशरथ के घर में जन्म लिया। अगस्त्यसंहिता के मुताबिक जिस वक्त प्रभु श्री राम का जन्म हुआ, उस वक्त दोपहर का समय था और घड़ी में 12 बज रहे थे। पुनर्वसु नक्षत्र, कर्क लग्न और मेष राशि थी। प्रभु के जन्म के समय सूर्य और अन्य पांच ग्रहों की शुभ दृष्टि पड़ रही थी। ग्रह-नक्षत्र के इन सुखद संयोंगों के बीच कौशल्या नंदन का जन्म हुआ। कहा जाता है कि इसी दिन गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना भी शुरू की थी।रामनवमी पर पूजा का महत्वसनातम धर्म में रामनवमी का विशेष महत्व माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन आप कोई भी शुभ कार्य बिना किसी लग्न और नक्षत्र की गणना के कर सकते हैं। इस दिन व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। सभी पापों का नाश हो जाता है। लेकिन व्रत करने का विधान है। इसका पालन जरूर किया जाना चाहिए।यह पढ़ें : मां भवानी को करना है प्रसन्न तो नवरात्र में भूले से भी न करें ये कामव्रत करने वाले भक्तों को सबसे पहले प्रभु की प्रतिमा को गंगा जल से स्नान करवाना चाहिए। इसके बाद माला-फूल अर्पित करके कुमकुम, हल्दी और चंदन का तिलक लगाना चाहिए। इसके बाद प्रभु के सामने दीपक जलाएं और खीर का भोग अर्पित करें। साथ ही इस दिन ब्राह्म्णों को भोजन भी कराए जाने का विधान है।रामनवमी पर बेहद शुभ मानते हैं ये कार्यवैसे तो रामनवमी पर हर मांगलिक कार्य किए जाने का विधान है। लेकिन गृह प्रवेश, दुकान या फिर कोई नया व्यवसाय शुरू करना इस दिन बेहद शुभ होता है। प्रभु की कृपा के साथ ही खूब तरक्की होती है।यह पढ़ें : मां भवानी के इस मंदिर में है अजीबोगरीब प्रथा, मां को प्रसन्न करने के लिए भक्त एक-दूसरे पर फेंकते हैं आग
Source: Navbharat Times April 09, 2019 08:45 UTC